Jagannath temple’s Ratna Bhandar Opens after over 40 Years: ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर का प्रतिष्ठित खजाना ‘रत्न भंडार’ आज खुल गया… आखिर 46 साल बाद भगवान जगन्नाथ का रत्न भंडार खुला है… इससे पहले ये साल 1978 में खोला गया था(नैट) आइए आपको बताते हैं भगवान जगन्नाथ का रत्न भंडार कब-कब खुला ? इससे पहले रत्न भंडार 1905, 1926 और 1978 में खोला गया था… और बेशकीमती चीजों की लिस्ट बनाई गई थी… रत्न भंडार को अंतिम बार 14 जुलाई 1985 में खोला गया था… उस समय इसकी मरम्मत करके इसे बंद कर दिया गया था.
जानिए मंदिर का इतिहास
चार धामों में से एक जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था… इस मंदिर में एक रत्न भंडार है… कहा जाता है कि इसी रत्न भंडार में जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा के गहने रखे गए हैं… कई राजाओं और भक्तों ने भगवान को जेवरात चढ़ाए थे… उन सभी को रत्न भंडार में रखा जाता है… इस रत्न भंडार में मौजूद जेवरात की कीमत बेशकीमती बताई जाती है… आज तक इसका मूल्यांकन नहीं किया गया है… ये ऐतिहासिक भंडार जगन्नाथ मंदिर के जगमोहन के उत्तरी किनारे पर है।
जगन्नाथ मंदिर का ये रत्न भंडार दो भागों में बंटा हुआ है…
बाहरी भंडार
भीतरी भंडार
बाहरी भंडार में क्या है ?
भगवान जगन्नाथ के आभूषण
बलभद्र और सुभद्रा के आभूषण
ये भंडार रथ यात्रा पर खुलता है
या किसी ख़ास त्योहार पर खुलता है
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन की ओर से हाईकोर्ट में दिए हलफनामे के अनुसार, रत्न भंडार में तीन कक्ष हैं… 25 गुणा 40 वर्ग फुट के आंतरिक कक्ष में 50 किलो 600 ग्राम सोना और 134 किलो 50 ग्राम चांदी है… इनका कभी इस्तेमाल नहीं हुआ…बाहरी कक्ष में 95 किलो 320 ग्राम सोना और 19 किलो 480 ग्राम चांदी है… इन्हें त्योहार पर निकाला जाता है… वर्तमान कक्ष में 3 किलो 480 ग्राम सोना और 30 किलो 350 ग्राम चांदी है… रोजाना होने वाले अनुष्ठानों के लिए इन्हीं का उपयोग होता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के चार द्वार हैं
सिंह द्वार
व्याघ्र द्वार
हस्ति द्वार
अश्व द्वार
जगन्नाथ मंदिर के व्याघ्र द्वार पर बाघ की प्रतिमा मौजूद है… ये हर पल धर्म के पालन करने की शिक्षा देता है… बाघ को इच्छा का प्रतीक भी माना जाता है… विशेष भक्त और संत इसी द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं… हस्ति द्वार के दोनों तरफ हाथियों की प्रतिमाएं लगी हैं… हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन माना जाता है… कहा जाता है कि मुगलों ने आक्रमण कर हाथी की इन मूर्तियों को क्षति-विकृत कर दिया था… बाद में इनकी मरम्मत कर मूर्तियों को मंदिर उत्तरी द्वार पर रख दिया गया… कहा जाता है कि ये द्वार ऋषियों के प्रवेश के लिए है… अश्व द्वार के दोनों तरफ घोड़ों की मूर्तियां लगी हुईं हैं… खास बात ये है कि घोड़ों की पीठ पर भगवान जगन्नाथ और बालभद्र युद्ध की महिमा में सवार हैं… इस द्वार को विजय के रूप में जाना जाता है।