Jammu Kashmir Election: दिल्ली से कश्मीर की राजनीति में गए पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद वोटिंग से पहले ही सरेंडर मोड में पहुंच गए हैं. चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा के बाद अब आजाद ने प्रचार भी नहीं करने का फैसला किया है. वैसे तो आजाद ने इसका कारण स्वास्थ्य बताया है, लेकिन ऐन चुनावी वक्त में उनके इस ऐलान के अलग ही सियासी मायने निकाले जा रहे हैं…..श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक सियासी गलियारों में एक सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सच में स्वास्थ्य की वजह से ही आजाद ने कश्मीर से दूरी बना ली है?….
आजाद बैकफुट पर क्यों ?
J&K में आजाद को बड़ी पार्टी से गठबंधन की उम्मीद थी
बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों में आजाद की दाल नहीं गली
घाटी में राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 बड़ा मुद्दा है
आजाद का इस पर रवैया ढुलमुल ही रहा है
जब 370 हटा उस वक्त आजाद ही नेता प्रतिपक्ष थे
आजाद की पार्टी में ताराचंद से लेकर कई बड़े नेता शामिल हुए
लेकिन अब उनमें से अधिकांश नेता पार्टी छोड़ चुके हैं
आजाद के पास न तो वर्तमान में नेता हैं और नीति
कुल मिलाकर कहा जाए तो घाटी में लड़ने के लिए आजाद के पास न तो वर्तमान में नेता हैं और नीति…..2022 में कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद ने खुद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाई थी. आजाद ने अपनी पार्टी में उन नेताओं को जोड़ा, जो कांग्रेस या अन्य पार्टियों से नाराज चल रहे थे. शुरुआत में कहा गया कि आजाद की पार्टी घाटी की अधिकांश सीटों पर फोकस कर रही है. आजाद ने भी कश्मीर में पूरे दमखम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था….गुलाम नबी को लेकर इस बात की भी चर्चा तेज है. इसकी 2 वजहें हैं- पहली वजह गुलाम नबी आजाद की उम्र. गुलाम वर्तमान में 76 साल के हैं. कश्मीर में अब जब अगली बार चुनाव होंगे तो उनकी उम्र करीब 80 के आसपास रहेगी…..दूसरी वजह उनकी राजनीति रही है. गुलाम नबी करीब 20 साल तक कांग्रेस में राज्यसभा के जरिए ही राजनीति की. कहा जाता है कि जब राहुल गांधी ने उन्हें कश्मीर में जाकर काम करने के लिए कहा तो उन्होंने बगावत कर दी.