पंजाब की राजनीति में पंचायत चुनावों से पहले बड़ा सियासी घटनाक्रम देखने को मिला है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष Sunil Jakhar ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। उनका यह कदम ऐसे समय पर आया है जब पार्टी पंचायत चुनावों की तैयारियों में जुटी हुई थी। जाखड़ के इस्तीफे के पीछे कई कारणों की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोई ठोस वजह नहीं बताई है।
सुनील जाखड़ का राजनीतिक सफर
सुनील जाखड़, पंजाब की राजनीति का एक बड़ा नाम हैं, जो पहले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रह चुके हैं। वह पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उनका राजनीतिक करियर लंबे समय से चर्चा में रहा है। जाखड़ पंजाब के तीन बार विधायक रह चुके हैं और उनके परिवार की गहरी राजनीतिक जड़ें रही हैं। उनके पिता, बलराम जाखड़, लोकसभा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रहे थे।
2022 में कांग्रेस से मतभेद के बाद सुनील जाखड़ ने भाजपा का दामन थामा। भाजपा ने उन्हें पंजाब में प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपा, जिससे पार्टी को राज्य में एक मजबूत चेहरा मिला। जाखड़ का भाजपा में आना पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना गया, क्योंकि उनके अनुभव और राजनीतिक कद से भाजपा को राज्य में बढ़त मिलने की उम्मीद थी।
इस्तीफे का समय और प्रभाव
सुनील जाखड़ का इस्तीफा उस समय आया है जब पंचायत चुनावों की तैयारियां चरम पर हैं। पार्टी के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि पंचायत चुनाव राज्य की जमीनी राजनीति को प्रभावित करते हैं और लोकसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। ऐसे समय में जाखड़ का पद छोड़ना भाजपा के लिए एक झटका साबित हो सकता है।
हालांकि, जाखड़ ने अपने इस्तीफे का कारण सार्वजनिक रूप से नहीं बताया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनके इस फैसले के पीछे पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी खींचतान हो सकती है। भाजपा में शामिल होने के बाद से जाखड़ का प्रभाव उतना नहीं दिखा जितनी उम्मीद की जा रही थी। इसके अलावा, पंजाब की सिख राजनीति में भाजपा की पकड़ अब तक कमजोर रही है, और पार्टी अभी भी राज्य में अपने जनाधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
भाजपा के लिए आगे की राह
सुनील जाखड़ के इस्तीफे के बाद भाजपा के सामने अब कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। पंचायत चुनावों की तैयारियों को देखते हुए पार्टी को जल्द ही नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करना होगा। जाखड़ का इस्तीफा पार्टी की चुनावी रणनीति पर असर डाल सकता है, लेकिन भाजपा को अब राज्य में अपने संगठन को मजबूत करने के लिए नए चेहरों और गठबंधन की जरूरत होगी।
भाजपा ने अभी तक जाखड़ के इस्तीफे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन पार्टी के नेताओं के बीच मंथन शुरू हो चुका है। नई नेतृत्व टीम के चयन पर सभी की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह चुनावी दौर में पार्टी की स्थिति को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाएगी।
सुनील जाखड़ का इस्तीफा पंजाब की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। पंचायत चुनावों से ठीक पहले इस तरह का कदम भाजपा के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी किसे नया प्रदेश अध्यक्ष बनाती है और किस तरह से अपनी चुनावी रणनीति को आगे बढ़ाती है।